वापिसी इम्पॉसिबल- सुरभि सिंघल
डियर दी
आपकी दूसरी बुक "वापिसी इम्पॉसिबल" आज पढ़ पाया। पहले तो आपको रिव्यु के लिए इतना इंतज़ार कराया उसके लिए क्षमा।
किताब की बात करें तो लाजबाब कंटेंट परोसा है आपने हम पाठकों के लिए। लिखने का तरीका और फ्लो दोनों ही बेहद मेरे रुचि के विषय रहे। जैसे हर कहानी में नायक नायिका किसी न किसी मोड़ पर पहली बार मिलते हैं इस कहानी में भी मिले मगर सबके मिलने का अंदाज, जगह अलग-अलग होती है वैसे ही इसमें भी अनुसार और सुरम्या की मुलाकात फेसबुक पेज पर होती है। जो वाकई में नया है। पढ़ते वक्त ऐसा लग रहा था कि आपके खून में फिलॉसफी नहीं घुली है आपकी फिलॉसफी में केमिकल के साथ-साथ खून घुल गया है।
एक-एक जगह का, घटना का, और संवाद का सर्वांग रूप से वर्णन करना तो मैं आपसे सीखा हूँ। लास्ट में इस कहानी ने इमोशनल कर दिया। पहले सुरम्या ने धोखा दिया फिर उसे ही कुछ नहीं मिला। जब दो ऑप्शन उसने रखे थे तो बात तो बिगड़नी ही थी। अनुसार ने बहुत कोशिश की सुरम्या को अपना बनाने की मगर डबल गेम ने दोनों की लाइफ बीच मझधार में छोड़ दी। बेहद उम्दा किताब...
08/07/2019
सोमिल जैन "सोमू"
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