Translate

वर्तमान को वर्धमान की आवश्यकता है


                     भगवान महावीर स्वामी
 चित्र निर्माणकर्ता- आर्टिस्ट आयुष जैन




महावीर भगवान और उनके सिद्धान्त "वर्तमान को वर्धमान की आवश्यकता है" ये भजन हर महावीर जयन्ती के दिन और पूरे वर्ष भर दुहराया जाता है मगर क्या हमें इसके असल मायने मालूम हैं या नहीं? क्या हम इसका अर्थ समझते हैं? या सिर्फ हम गाने बजाने के लिए इस गीत को दुहराते हैं। जब हमने ये कहा कि वर्तमान में वर्धमान की आवश्यकता मतलब महावीर स्वामी के सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाना है। ये अटल सत्य है कि अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर अब इस पंचम काल में नहीं आने वाले लेकिन जब उनकी आवश्यकता की बात होती है तो उसका मतलब उनके सिद्धांतो को हमारे रोजमर्रा के जीवन में अपनाने और उनका प्रयोग करने से है।

भगवान महावीर स्वामी के द्वारा बताए सिद्धांतो की उपयोगिता तो कभी समाप्त होने वाली नहीं है। वर्तमान में हम जिस कोरोना महामारी से गुजर रहे हैं उससे निपटने का, उनसे मुक्ति पाने का सहारा उनके बताए अहिंसा, शाकाहार, इत्यादि हैं।
महावीर स्वामी की पहली शिक्षा के रूप में आती है "सभी आत्माएं बराबर है, कोई छोटा बड़ा नहीं"
पढ़ने में ये शिक्षा छोटी और सामान्य है मगर जब हम इसके विस्तार में जाते हैं तो इसका पालन पूरे विश्व में सुख शांति फैलाने का काम करता है। जब हमें ये स्मरण होगा कि सभी आत्माएं बराबर हैं चाहे वो मनुष्य की आत्मा हो या पशु, जानवर की तो फिर उनकी हिंसा का भाव हमें मन में आ ही नहीं सकता।
प्रासंगिक उदाहरण है "तब्लीगी ज़मात" का। जिसने पूरे देश में भयंकर और दयनीय स्थिति खड़ी कर दी है। जहाँ गलत कुछ बुरे मुसलमान ने किया और उनकी पैरवी करने के लिए अच्छे मुसलमान आते हैं। अच्छे और बुरे से मतलब वस्तु से नहीं बल्कि उनकी सोच, उनके विचार से है जो जिहाद के लिए तत्पर हुए। जहाँ एक और कहा जा रहा है कि इन मुस्लिमों को मारा जाए वहीं महावीर भगवान का सिद्धान्त कहता है कि "भूलेला भगवान छे" उनसे पाप हुआ है मगर वो घृणा के पात्र नहीं है। पाप से घृणा करना मगर पापी से नहीं हमारे वर्धमान के सिद्धान्त यही कहते हैं। उनकी आत्माएं तो भी हमारी तरह ही हैं बराबर हैं। बस अपने स्वभाव को भूल गए हैं। महावीर भगवान कहते हैं कि आत्मा का स्वभाव तो जानना देखना है कषाय करना नहीं किंतु उनसे अगर कषाय हुईं हैं तो अपने स्वभाव को भूलकर हुईं हैं। "शरण जो अपराधी को दे, अरे अपराधी वह भगवान" उनसे अगर अपराध हुआ है तो उसकी क्षमा भी है। महावीर स्वामी के पाँच नाम ही बहुत बड़ी शिक्षा देते हैं। वीर, अर्थात गलती पर क्षमा करना ही वीरता है। शत्रु को भी क्षमा करना हमारे स्वभाव में रह है। यदि हम भी दुनिया के कहे पर चलने लगे तो अहिंसा और शांति का संदेश जो वीर स्वामी ने दिया वो धरा का धरा रह जायेगा। आज वर्तमान का समय उनके सिद्धातों को रटने का नहीं बल्कि उनका जीवन में प्रयोग करने का है।
जब पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है तब हमें महावीर के सिद्धांतों के पालन की अति आवश्यकता है। प्रेक्टिकल रूप आज हमें अपनाने की जरूरत है। महावीर स्वामी ने कोई युद्ध नहीं किया था फिर भी अंतरंग शत्रु का उन्होंने नाश किया था। आज हमें उस परम अहिंसक आचरण को अपनाने की जरूरत आन पड़ी है जिसे दुनिया ने एक धर्मांधता कहकर ठुकरा दिया था। महावीर स्वामी का दर्शन ये कहता है कि हम सत्य की खोज में निकले। जो दिखाया जा रहा है उस पर आंख बंद करके विश्वास न करें बल्कि जो नहीं दिखाया जा रहा उस सत्य को देखने की कोशिश करें। सत्य समझना ही पुरुषार्थ है। एक चित्रपट में कहा था "अगर आप सत्य के साथ हैं तो जीतने तक हार मत मानिए"
आज महावीर स्वामी के सिद्धांत अहिंसा जिसे श्रीभगवदगीता में "अहिंसा परमो धर्मः" कहा गया है। हम अपने जीवन में और पूरा विश्व अहिंसा को अपनाकर मासाहार छोड़कर इस महामारी से पार पा सकता है।
तब्लीगी जमाती वाली घटना से जो लोगों के मन में हिंसा पनपी है वह द्रव्य हिंसा से बहुत विकराल है। अगर यह काय में उतरकर आयी तो भारत देश अमन का केंद्र नहीं विध्वंश का गढ़ बन जायेगा। देश में कोरोना फैलने का सबसे बड़ा कारण झूठ है। जिन भी व्यक्तियों को कोरोना के लक्षण दिखने लगे थे उनका कर्तव्य था कि सरकार को बताए, अपना इलाज कराए मगर कनिका कपूर जैसे शिक्षित लोगों की वजह से यह और बड़ा है जमाती लोग जो अभी भी छिपे हुए हैं उनको भी झूठ छोड़कर अपनी गलती मानकर सत्य स्वीकारना चाहिए। अपने परिवार में किसी को भी कोरोना की आशंका है तो फौरन प्रशासन को खबर दें इसी सत्य के मार्ग पर चलकर हम इस महामारी से जीत सकते हैं।
अपरिग्रह का सिद्धान्त जरूरत का सामान रखने की शिक्षा देता है क्योंकि लोग इस महामारी से कम गरीबी और भुखमरी से ज्यादा मर रहे हैं। लोगों को भी भोजन उपलब्ध हो यह परोपकार भी महावीर स्वामी की ही देन है। महावीर स्वामी ने भी दीक्षा लेकर यही बताया था कि परिग्रह त्यागकर ही मुक्ति मिलेगी।

जहाँ आज लोग हिन्दू और मुस्लिम में लगे हैं। धर्मों के अनुसार लोगों को बांट रहे हैं और इंसानियत को भूल चुके हैं वहीं महावीर स्वामी का "सर्वोदय तीर्थ" जिसमें सबका उदय होता है। प्राणिमात्र का कथन है ऐसे सर्वोदय अहिंसा को अपनाना हमारा परम कर्तव्य है।
खुद को जानने की कोशिश, खुद की खोज में निकलना ये भी महावीर की ही सीख है। किसी भी महामारी को हम महावीर स्वामी के विचारों से ही हरा सकते हैं।

महावीर स्वामी के उपदेश में प्राणी मात्र के उदय की बात कही है। बिना भेदभाव सबके कल्याण की भावना है। आज हमें राग द्वेष से बचकर समभाव धारण करने की आवश्यकता है। इन्हीं बातों का अर्थ है "वर्तमान को वर्धमान की आवश्यकता है"। पूरे विश्व मे शांति हो यही महावीर स्वामी की सर्वोदयी देशना है जिसका अनुकरण करके हम वर्तमान में सुखी हो सकते हैं।

सोमिल जैन "सोमू"

एक टिप्पणी भेजें

2 टिप्पणियाँ

अपनी राय अवश्य दें