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दिव्य प्रकाश दुबे और उनकी किताबें

 दिव्य प्रकाश दुबे




"अक्टूबर जंक्शन" किताब पड़कर भी मुझे वही आनन्द आया जो आपकी पहले आयीं तीन किताब पड़कर आया था।एक बार फिर से आपने मुझे जिंदगी के उस सच स रूबरू करा दिया जो शायद मुझे इस उम्र में पता नहीं है।चित्रा और सुदीप की कहानी मेरे दिल को छू गई और इस किताब ने मुझे अपनी किताब को सबके सामने लाने के लिए फिर से मोटिवेशन दिया।जैसे मैंने आपकी "मुसाफिर कैफे" 3.30 घंटे में पड़ी थी वैसे ये भी 4.40 मिनिट में पड़ ली क्योंकि इसमें बोर होने जैसा कुछ नहीं था।जब सबसे पहले आपकी किताब "मसाला चाय" पड़ी थी तब से आपकी राइटिंग से घना लगाव हो गया था।फिर मुसाफिर कैफे में चंदन की आदत किताब पड़कर किताब के पीछे किताब को पूरा कब पड़ा इसकी डेट लिखना मुझे बहुत अच्छा लगा और मैं भी ऐसा ही करता हूँ और आज भी ऐसा ही किया। .
10 अक्टूबर के दिन मेरे लिए भी ट्रेजडी भरा था ।आपकी किताब में यही पड़कर अच्छा लगा।
और अंत मे आपने जो बातें कही वो एकदम झकास थी मतलब वो बातें दिल छू गईं।

सोमिल जैन "सोमू"


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2 टिप्पणियाँ

  1. सही बात है, दिव्य जी की लेखनी तो दिव्य है ही , आप भी बहुत सुंदर लिखते हो, 😍😍👍👍

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  2. एक अच्छे पाठक का , एक अच्छा रिव्यु।👏👏👏

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