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एक मैं संजू एक मेरी संजू- संजय मलिक

एक मैं संजू एक मेरी संजू- संजय मलिक



बुक में आज की जनरेसन को समझ आने वाले सारे डायलॉग मौजूद हैं। "मोहोब्बत के नाम पर आप कुछ भी करा सकते हैं कर सकते हैं" ये वाला डायलॉग मेरे दिल को छू गया। कहानी बिल्कुक जानी-पहचानी उत्सुकता बटोरती हुई पाठक के दिलों को घर कर जाती है। रियलिटी से कनेक्टेड स्टोरी से हम भी कनेक्टेड हो जाते हैं और जैसा कि आपने कहा कि इसमें आपने अपना प्यार खोया है। उस गलती से आपको एक स्टोरी भी मिली और तजुर्बा भी। ये बात मैं पहले ही बता चुका हूं कि प्रूफ रीडिंग घटिया है मतलब एक पेज भी बिना प्रिंटिंग मिस्टेक्स के पढ़ ही नहीं सकते। यही गलती स्टोरी को हल्का बना देती हैं। क्योंकि इसमें स्टोरी कम गलतियां ज्यादा दिखती हैं। रोचकता की कमी नहीं है। गीत और संजय के मिलने की उत्सुकता बड़ी अच्छी तरह से प्रस्तुत की है आपने। "फिर ले आया रहनादूर, क्या कीजे " गाना बिल्कुल फिट रहा आपकी स्टोरी में। कल संजय जिस चीज से भाग रहा था आज उसी का इंतज़ार बेसब्री से कर रहा है आगरा में। मजा आ गया। पहले 40 पेज पढ़ी थी लेकिन आज मैंने फिर से पढ़ी पूरी औऱ बस खत्म होने वाली है। "गीत को धोखा देना नहीं आता संजय" मजेदार लाइन है संजय। स्टोरी में दम है भाई जी काश कि इसे आप थोड़ा रुककर प्रूफ रीडिंग करके अच्छे बड़े पब्लिशर को ये कहानी भेजते। इमोशनल कर दिया यार इस स्टोरी ने....एक बार गीत से मिलना चाहता हूँ। कहानी तो बिल्कुल ही पलट गई और ये सच्ची कहानी है इसमें भी मुझे ताज्जुब हैं। फिलॉसफी भी अच्छी खासी डाली है आपने इसमें। सच में जब ऐसी कहानियां पढ़ता हूँ तो बहुत कुछ लिखने का मन करता है। संजू से भी मिलना है उस छोटी सी बच्ची से जो बेखबर है अपने भविष्य से। मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ आप अच्छे लेखक का दर्जा अवश्य पाएंगे बस दिमाग खराब प्रिंटिंग मिस्टेक्स ने ज्यादा किया। कंटेंट दमदार है।

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