क्या लिखूँ ....
..कि मेरे सूने से आँगन में एक नन्हीं सी परी खेलती है।
दिल को सुकून देती है मेरे सारे राज खोलती है।
वो उसका खिलखिलाना,बातें बनाना।
मुझसे झगड़ना, फिर रूठ जाना।
मचलना, गिड़गिड़ाना और फिर आँखों से आँसू बहाना...... याद है मुझे......😢😊😊😊😊
क्या कहूँ.....
..चिड़ियों की चहचहाहट जैसी वो आँगन को गुंजाती हैं।
मेरा सर गोद मे रखकर अपनी,माँ की लोरियाँ सुनाती हैं।
थके हारे से कंधो का ,वो ही साहस बढ़ाती हैं।
मेरे गहरे से जख्मों पर ,प्यार मलहम लगाती हैं।
वो बार बार मुझसे महंगी चीजें माँगती हैं।
शायद कोई खिलौना,कीमती घड़ी माँगती हैं।
मगर फिर....
सम्हल जाती हैं, समझ जाती हैं.....
और मुझे लगता है कितनी समझदार हो गईं हैं...
दर्द छुपाते छुपाते कितनी बड़ी हो गईं हैं।
वो हँसना चाहती हैं ,मेरे साथ खेलना चाहती हैं।
भाई से बातें करना चाहती हैं मुझसे लड़ना चाहती हैं।
वो मेरे पास नहीं हैं मगर अपने होने का अहसास दिलातीं हैं।
मेरे कानों में कहकर"भैया मैं हूँ न" मेरा हौंसला बढ़ाती हैं।
मेरे जीवन का सरगम वो,बताना भूल जाता हूँ।
मैं उनसे प्यार करता हूँ जताना भूल जाता हूँ।
कई सालों से राखी पर घर नहीं आया.....
इसी बात का गुस्सा उनके अभी तक सर पे बैठा है...
उन्हें मजबूरियां बताकर सुलह करता हूँ घर जाकर.
समझ जाती हैं जैसे माँ हों, गले लगाती हैं मुस्काकर।
सुनहरी धूप के जैसी, मलम का साया होती हैं।
किसी मासूम बच्चे की,जैसे कोई आया होती है।
बांधने एक राखी वो,कलाई खींच लेती हैं।
मेरे सीने से लगकर वो ,ये आँखे मीच लेती हैं।
कहता हूँ मेरी शान हैं बहना।
नन्ही सी मेरी जान हैं बहना।
गम में भी खुशियां दे जाए।
ऐसी तू मेहमान है बहना।
😊😊😊😊😊😊
बहना......,मैं भूल जाता हूँ तुमसे कहना।
तुम मेरे आस पास यूँ ही रहना.......बहना.....
सोमिल जैन '"सोमू"
..कि मेरे सूने से आँगन में एक नन्हीं सी परी खेलती है।
दिल को सुकून देती है मेरे सारे राज खोलती है।
वो उसका खिलखिलाना,बातें बनाना।
मुझसे झगड़ना, फिर रूठ जाना।
मचलना, गिड़गिड़ाना और फिर आँखों से आँसू बहाना...... याद है मुझे......😢😊😊😊😊
क्या कहूँ.....
..चिड़ियों की चहचहाहट जैसी वो आँगन को गुंजाती हैं।
मेरा सर गोद मे रखकर अपनी,माँ की लोरियाँ सुनाती हैं।
थके हारे से कंधो का ,वो ही साहस बढ़ाती हैं।
मेरे गहरे से जख्मों पर ,प्यार मलहम लगाती हैं।
वो बार बार मुझसे महंगी चीजें माँगती हैं।
शायद कोई खिलौना,कीमती घड़ी माँगती हैं।
मगर फिर....
सम्हल जाती हैं, समझ जाती हैं.....
और मुझे लगता है कितनी समझदार हो गईं हैं...
दर्द छुपाते छुपाते कितनी बड़ी हो गईं हैं।
वो हँसना चाहती हैं ,मेरे साथ खेलना चाहती हैं।
भाई से बातें करना चाहती हैं मुझसे लड़ना चाहती हैं।
वो मेरे पास नहीं हैं मगर अपने होने का अहसास दिलातीं हैं।
मेरे कानों में कहकर"भैया मैं हूँ न" मेरा हौंसला बढ़ाती हैं।
मेरे जीवन का सरगम वो,बताना भूल जाता हूँ।
मैं उनसे प्यार करता हूँ जताना भूल जाता हूँ।
कई सालों से राखी पर घर नहीं आया.....
इसी बात का गुस्सा उनके अभी तक सर पे बैठा है...
उन्हें मजबूरियां बताकर सुलह करता हूँ घर जाकर.
समझ जाती हैं जैसे माँ हों, गले लगाती हैं मुस्काकर।
सुनहरी धूप के जैसी, मलम का साया होती हैं।
किसी मासूम बच्चे की,जैसे कोई आया होती है।
बांधने एक राखी वो,कलाई खींच लेती हैं।
मेरे सीने से लगकर वो ,ये आँखे मीच लेती हैं।
कहता हूँ मेरी शान हैं बहना।
नन्ही सी मेरी जान हैं बहना।
गम में भी खुशियां दे जाए।
ऐसी तू मेहमान है बहना।
😊😊😊😊😊😊
बहना......,मैं भूल जाता हूँ तुमसे कहना।
तुम मेरे आस पास यूँ ही रहना.......बहना.....
सोमिल जैन '"सोमू"
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