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आ गई विदाई😢😢😊☺️




ये ब्लॉग लिखने से पहले सब लेखकों की तरफ से बता दूं कि लेखक स्वतन्त्र होता है। वो किसी के बाप का नोकर नहीं होता। और सबके तजुर्बात अपने-अपने अलग-अलग होते हैं।
तो फाइनली आज हमारी विदाई थी। स्मारक छोड़ने का मलाल कुछ नहीं है क्योंकि मैंने होस्टल में 10 साल सिर्फ काटे नहीं हैं जिये हैं।
बस जिस चीज से आप जुड़ जाओ उससे दूर होते समय बुरा तो लगता है। इन 10 साल में बहुत कुछ मिला और बहुत कुछ पीछे छूट गया। कुछ लोगों ने अपनी खुद खुशी से हमारा साथ छोड़ा और खुदखुशी कर ली। कुछ लोगों को अपनी खुदाई के आगे हम दिखे ही नहीं।

बड़ा इमोशनल दिन होता है ये विदाई का।
साला अच्छे अच्छे सख्त लोगों भी रुला देता है।
ये और बात है कि कुछ अपनी लास्ट स्पीच में रो देते हैं कुछ बाथरूम में जाकर या कुछ रूम में लाइट बंद करके अँधेरे में रो देते हैं। क्योंकि मेरा दोस्त प्रतीक विदिशा जिसे इन पाँच साल में कभी रोते हुए नहीं देखा, विदाई के दिन उसकी भी आँखें भरी थीं। तब लगा कि हर दिल मे दर्द छुपा होता है।

ब्लॉग पढ़ने से पहले कुछ लोगों से करबद्ध निवेदन है कि इस ब्लॉग में आईं गलतियों और गालियों को नज़रंदाज़ करें...
अगर नज़रंदाज़ नहीं कर सकते तो तो आ जाईये हवेली पर.......
 "I am always ready for  *******"

आज हमारी विदाई थी। "आत्मन" यही नाम है हमारी क्लास का। यूनिटी में सबस आगे हमारी क्लास। हमारी यूनिटी तोड़ने के चक्कर में अच्छे अच्छे हलाल हो गए। उसी क्लास की विदाई है जिसका ब्लॉग आज से एक साल पहले "आत्मन कक्षा का उदय" इस नाम से पोस्ट किया था। और जिसने सबसे ज्यादा व्यूअर पाए थे इसमे कतई झूठ नहीं है।"विदाई समारोह" है या यूँ कहें "भगाई समारोह" है क्योंकि आज जो हुआ वो भगाई समारोह से कम नहीं था। एडजस्टमेंट का सबसे बड़ा उदाहरण था हमारी विदाई। अब क्या कहें........ आगे बहुत कुछ कहना है।

भगाई समारोह.......& विदाई समारोह
ये कहने के दो कारण हैं। एक तो यह कि जिनके दिल में हम जगह बना चुके हैं जो हमें पसंद करते हैं उनके लिए हमारा "विदाई समारोह" है। और जिनकी नज़र में हम खटकते हैं पसंद नहीं उनके लिए "भगाई समारोह" है।
बाकी फाइनल तक आते-आते सबका भगाई समारोह ही होता है।

नोट- ऊपर लिखी हुई बात बेहद अच्छी है जो लोग इस बात को दिल पर, दिमाग पर जहाँ 
भी लेना है ले सकते हैं खुल्ली छूट है।

अब मैं  समझदार हो गया हूँ। क्योंकि पहले मैं खुद को ब्यूटीफुल कहता था और अब मैं खुद को हैंडसम कहता हूं। मैच्यूरिटी की abcd भी सीख गया हूँ। अब तक हमने  स्मारक में सिर्फ भोजनालय की थाली उठाई, खाना खाया, और थाली धुलने रख दी। मगर अब तो थाली उठानी पड़ेगी, खाना बनाना पड़ेगा, थाली धोकर रखनी पड़ेगी और फिर उठानी पड़ेगी। यही कुछ दिनों के लिए हमारी रोजमर्रा की जिंदगी बनने वाली है।

हमरी कहानी शुरू हुई थी। दिल्ली प्रशिक्षण शिविर - 2014
हमारे होस्टल से बाबा इलायची मतलब नयन को छोड़कर 10 वी क्लास में किसी की परसेंट 80% पार नहीं हुई थी। मेरे चाचा ने स्मारक पड़ने से मुझे मना नहीं किया क्योंकि हम उनकी उम्मीद पर खरा नहीं उतरे थे। मतलब 10th में टॉप नहीं किये थे। जो उनके लिए दुख की बात थी और मेरी लाइफ का बेस्ट डिसिजन था। सिद्धायतन से निकले नो नमूनो में से मुझे मिलाकर चार नमूने स्मारक में प्रवेश पा चुके थे। 5 नमूने कोटा महाविद्यालय में जम गए। ये हमारी दूसरे प्रसिद्ध होस्टल में आने की संक्षेप में कहानी थी।

अब शुरू हुआ आत्मन क्लास का दबदबा.....
मैं तो बहुत खुश था कि जयपुर आ गया। उन चार दीवारों में कैद रहता तो कभी कुछ लिख ही नहीं पाता। सब अपने अपने उद्देश्य में लग गए थे और मैं अपने उद्देश्य को खोजने में लग गया था। इसी के चलते मुझे मेरे दोस्तों से बहुत कुछ सीखने को मिला जो शायद अभी तक पढ़ी सैकड़ो किताबें नहीं सिखा पाईं।

शुरुआत करते हैं 

1.अनुभव शास्त्री-

सकल इनोसेंट थी। आंखों पर रेड चश्मा लगाए दूर-दूर से इनकी बॉडी से कॉन्फिडेंस टपकता था। इनका वक्तव्य सुनकर लगा जैसे ये पैदा होते ही बोलने लगे थे। हमारे परिचय सम्मेलन में इनको सुनकर सब दंग रह गए थे। हम तो हम हमारे सीनियर्स भी एक ठो इन्हें ही देखते रहे- "इस बार की कनिष्ठ अच्छी आयी है" ये बात कानों को खुशी दे रही थी। हम खुश थे क्योंकि हमें एक दोस्त और एक अच्छा संचालक दोनों मिल मिल गए थे। हमें दुख है कि हम उसकी लास्ट स्पीच नहीं सुन पाए। मैं वही चीज चेंपना चाहता हूं जो हमारे होस्टल का प्रसिद्ध वाक्य रहा करीब दो सालों में    " किसी कारणवश" जब भी कोई काम नहीं होता तो वजह यही होती "किसी कारणवश" 
तुम्हें सुनना था यार। मगर जो तूने आज रात किया वो एक दम लाजबाब था। इज्जत के साथ बेइज़्ज़ती अच्छी लगी। और इस बात के स्टैंड के लिए जब तक जान है तब तक तेरे साथ हैं हम। जब तक मैं जिंदा रहूँगा तुम्हारी बातें कविता लेख सबकुछ पड़ता सुनता रहूँगा।
यूट्यूब पर भाई ने कमाल कर दिया। भाई ने हज़ारों susbcribe इतने कम दिनों में जोड़ लिए इसके लिए बहुत बहुत बधाई। तुमसे बहुत कुछ सीखने को मिला। बाकी हमें लिखने के लिए नयी कहानी देते रहना।

2.अमन शास्त्री-
बंदे में बिल्कुल सुधार नहीं हुआ क्योंकि शुरू से ही इनमें सुधार की आवश्यकता ही नहीं थी।बस इम्प्रूवमेंट होता रहा। जैसे आये थे वैसे ही जा रहे हैं बाकी परिवर्तन तो हर व्यक्ति में होता है इनमें भी हुआ। संगति हमने इनकी सबसे ज्यादा की। शायद इसलिए क्योंकि "श्री प्रवचनसार परमागम" की गाथा में लिखा है "समान गुण वाले की संगति करें या अपने से ज्यादा गुणवान वाले व्यक्ति की संगति करें"
हमने भी अपने से ज्यादा गुणवान, समझदार, सहनशील व्यक्ति का पल्लू पकड़ा और इन पाँच सालों को जिया। अंत से आप सभी अवगत हैं😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊

3.अतिशय शास्त्री-
हमारी टिपिकल बुंदेलखंडी से अतिशय भैया हमेशा परेशान रहे हैं। जिसका जिक्र वो अपने लास्ट स्पीच में किये। दोस्तों की हेल्प के लिए भैया हमेशा तत्पर रहे औऱ हमारी भी बहुत हेल्प किये। बाकी आपके साथ पाँच साल अच्छे जिये।

4.प्रशांत शास्त्री
भाईसाब जैसे आये थे वैसे ही हैं बस उम्र में इजाफा हुआ है। हमारी इनसे हमेशा बनती थी।कभी-कभी हम इन्हें सुना भी देते थे और हम भी इनकी मधुर वाणी सुन लेते थे। वैसे इनकी इस साल सारी बीमारियां ठीक हो चुकीं हैं अब इनके पास कोई एक्सक्यूज़ नहीं है। सफर सुंदर रहा तुम्हारे साथ प्रशांत.....

5.सन्मति शास्त्री
हमारे गाँव के बगल वाले गांव से बिलोंग करने वाले सन्मति जी हमारे अच्छे मित्र रहे हैं और रहेंगे भी। बाकी इनका गुस्सा पहले से बहुत कम हो गया है। जो हमें खुशी का कारण है जिम के कारण ये सूखे कांटे से फूलकर रसगुल्ले हो गए हैं। बाकी सफर विचित्र रहा तुम्हारे साथ सन्मति........


5.श्रेणिक शास्त्री लट्ठे
"लट्ठे" नाम से प्रसिद्ध भाई से सबसे पहले क्षमा चाहता हूँ। तुमसे इस साल थोड़ी कम ही बनी या तुम पर मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। कहानी तुम्हारी मुझे पहले से ही पता थी। तुम्हारे साथ मैं अब हमेशा खड़ा हूँ। और साले कबसे बोल रहा था तू मेरे से कि मेरे रूम पर आएगा नावेल लेने। अभी तक नहीं आया। आ जाना यार मना नहीं करूँगा।बाकी तुम्हारे साथ सफर अनजाना जाना पहचाना रहा। 

6.लक्षित शास्त्री
स्पीच देना तो तू मज़ेदार सीख गया है लेकिन अभी प्रवचन की बारी है। तुम्हारा स्वरूप न हमें कनिष्ठ में समझ आया था न अभी आया है।मगर शुक्र है कि तुम अंत तक आते आते मुझे  तो समझ गए। बाकी तुम्हारे साथ सफर थोड़ा  टिपिकल रहा।

7. सिद्धार्थ शास्त्री
सिद्दू भाई- मनोरंजक दोस्त। तुम्हारे साथ तो दशलक्षण का सफर भी सुहाना रहा।भाई जैसा साथ देने के लिए, सपोर्ट देने के लिए शुक्रिया। तुम्हारे साथ हँसी लानी नहीं पड़ती अपने आप आ जाती।

8.सपन शास्त्री-
तुम अच्छे पाठक के रूप में साथ रहे। तुमसे बड़े भाई जैसा प्यार मिला। थोड़ी बहुत लड़ाई भी हुई मगर सब सही हो गया। बाकी सफर दोस्ताना रहा।

9.रजत शास्त्री-
जोश और होश की अगर जोड़ी कहें हमारे इन पांच साल में तो वो हमारी रही। पूजन और विधान में रज्जो का जोश और मेरा होश दोनों साथ मिले तो माइक फाड़ दिया। अबे कितना हंसता रहता है इस साल तो मूवीज की बाढ़ आ गई थी तेरे पास। बाकी तेरे साथ का सफर संगीतमय रहा।

10.दीपक शास्त्री
हमारी क्लास के स्टाइलिश स्टार कहलाने वाले दीपक भाई से इस साल ज्यादा लगाव रहा। बाकी सफर मजेदार रहा अपना।

11.प्रतीक शास्त्री।
सबके चहेते, मुझे somu नाम देने वाले पीपू यार तुमने तो आज रुला ही दिया था। समझ में नहीं आ रहा कि आँसू छुपाऊ या आंसू दिखाऊँ। मजेदार इंसान है तू बस मिलते रहियो भोपाल और विदिशा ज्यादा दूर नहीं है। बाकी तेरे साथ का सफर शांत मगर शैतानी भरा रहा।

12.सचिन शास्त्री
तुम तो लादेन से सीरियस कैरियर पर ध्यान देने वाले बन गए यार। तरक्की करोगे यार तुम तो। तुमसे सीखने को मिला कि अपनी रुचि से अपने लक्ष्य में लग जाओ नहीं तो झकमार के लगना पड़ेगा।एक दम लादेन टाइप रहा अपना सफर।

13. देवांश सेठ शास्त्री-
सेठ से लड़ाई बहुत हुई। लेकिन लास्ट में इन्ही से सबसे अच्छी बनी। शुक्रिया इतना साथ देने के लिए हमेशा मेरी हेल्प करने के लिए तैयार रहने के लिए। क्योंकि जिनसे सहयोग की उम्मीद थी वो तो नपुंसक निकले लेकिन बाद में पता चला कि तू ही काम आएगा। तेरे साथ का सफर खुशमिजाज रहा।

14. पीयूष मड़ावरा शास्त्री
हमेशा सपोर्ट करने वाला बंदा यही हैं। हमारी क्लास का सेनानायक भी यही है। अभी भी कोई हेल्प चाहिए पड़ती तो बड़े भाई की तरह इसको फ़ोन लगा देता काम होता ही होता हैं। तेरे साथ का सफर कभी अकेला नहीं लगा।

15.प्रांजल शास्त्री
पहले तो इनसे माफी क्योंकि पप्पू सबसे ज्यादा हमने ही इन्हें कहा। मगर इनके एक बार इमोशनल होकर कहने पर हमने उसके बाद कभी इन्हें पप्पू नहीं कहा। 11th, 12th में बहुत बनी तुमसे लड़ाई भी बहुत हुई। बाकी तेरे साथ का सफर मस्ताना रहा।

16. विनीत शास्त्री।
मुम्बई के भाई को प्रणाम। भाई जैसा प्यार देने के लिए शुक्रिया। हमेशा साथ देने के लिए शुक्रिया। माफी भी तुम्हारे इतने सारे नाम निकाले मैंने और तूने कुछ नहीं कहा। बाकी तेरे साथ का सफर अपनापन भरा रहा।

17. पीयूष शास्त्री टड़ा
तेरे साथ तो अभी सफर चलना है। बढ़िया बन्दा है तू। देखते हैं आगे क्या होता है।

हमारी क्लास की दो बहनें विदुषी श्रुति शास्त्री, और विदुषी वर्षा शास्त्री। तुम लोगों से बहुत कुछ सीखने को मिला हमें। पढ़ाई तो भैया अव्वल दर्जे की है तुम लोगों की। बाकी सफर अच्छा रहा।

नयन, शास्वत, जितेंद्र और मैं। हमारी दस साल की यारी है। आगे साथ रहेंगे या नहीं ये तो वक्त ही बताएगा। चायमित्र शास्वत भाई तुम तो साथ में बने रहोगे ये मुझे पक्का भरोसा है। नयन भाई तुमसे बहुत कुछ सीखे हैं तुम्हारी लास्ट स्पीच से सच बताऊँ तो मजा आ गया। इसलिए अभी रात के 2.30 बज रहे हैं मगर हमारे बारे में लिखने को मन नहीं मान रहा। हम लोग जरूरी नहीं आस-पास में रहेंगे मगर हम एक दूसरे के साथ जरूरी रहेंगे। आज तो जीतू भी रो दिया। भरोसा नहीं था कि वो रोयेगा। बुरा तो लग रहा है मगर क्या करें अब जो स्मारक से  सीखा है उसे प्रेक्टिकल रूप में भी तो करना है।

गुरुओं की बात करूं तो उनमें परम गुरु छोटे दादा जी जिनको प्रत्यक्ष और परोक्ष सुनकर एक आत्मविश्वास आ गया लाइफ में। शांति जी का गंभीर चिंतन हर परिस्थिति में समुंद्र की तरह हर उतार चढ़ाव में हमारे जीवन में काम आएगा। दीपक जी से करणानुयोग का ज्ञान मिला। पीयूष जी की तर्क शैली ने मुझे बहुत प्रभावित किया। प्रमोद जी भाईसाब का ही दिया संस्कृत का ज्ञान अभी तक याद है बाकी सब सपाट है। प्रतीति दी ने इग्लिश सीखने में बहुत हेल्प की। अच्युतकान्त जी ने क्रमबद्ध पर्याय का विस्तार से अध्ययन कराया। उन सभी गुरु जनों का परोक्ष रूप से शुक्रिया जिन्होंने हमें नमूने से नबाब बना दिया।


● पंडित जिनकुमार जी शास्त्री

आपको जिंदगी भर नहीं भूल सकता।आपसे बहुत कुछ सीखने को मिला है। कहते है वो शिक्षक जो कोर्स के अलावा सिखाता है उसकी हमारे दिल मे बहुत रेस्पेक्ट बहुत होती है। आपने भी कोर्स में जो नहीं था मगर लाइफ के लिए जरूरी था वो सबक भी हमें सिखाया। आपसे पूरी क्लास बहुत ज्यादा जुड़ी रही है। मैं शायद बहुत ज्यादा जुड़ गया था इसलिए दूर जाने से थोड़ी तकलीफ हुई।

●पंडित जिनेन्द्र जी शास्त्री

पहले तो इतना साथ देने के लिए जगह जगह विधान में ले जाकर सब कुछ सिखाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद बड़े भैया। आपको तो मैं बहुत पहले से जानता था। हमेशा से ही एक बड़ा भाई मानता हूं। और शायद बड़ा भाई ऐसा ही होता है जो छोटे भाई की हेल्प के लिए हमेशा तैयार रहे।

●पंडित गौरव जी शास्त्री,भाईसाब सहन शीलता की निशानी हैं। आपसे सीखा ज्ञान आगे बहुत काम आएगा।


मेरे जूनियर्स के लिए

अब तुम्हारी बारी है छोटे और शायद  उम्र में मुझसे बड़े भाईयो......

फाइनल क्लास में बहुत सारी जिम्मेदारी तुम लोगो की दी जाएंगी।अपना 100% अपने काम को देना और ऐसा काम करना कि वो काम जो आप हाथ में लो अगर तुम नहीं हो तो वो काम रुक जाए। तुम्हारी कमी उस काम मे आनी चाहिए।
दूसरी बात- व्यवस्थाओं से दिमाग लगाना, दिल मत लगाना। क्योंकि दिल जब टूटता है तब आवाज नहीं आती मगर हम टूट जाते हैं अंदर ही अंदर  बहुत दुख होता है।

   
अब बात करता हूँ आज की। आज दिनाँक है "30/7/2019।
विदाई हुए 4 महीने हो गए। इन चार महीनों में बहुत कुछ हुए। मेरी पहली किताब भी आ गई। कुछ उन लोगों की जात भी पता चली जो तुम्हें अपनी जान कहते हैं मगर साले वही साथ छोड़ देते हैं। मेरे दोस्तों किसी पर भी ऐसा भरोसा मत करो कि जब भरोसा टूटे तो तुम भी टूट जाओ। यहाँ तुम्हें प्रमोट करने के लिए कोई आगे आने वाला नहीं है जो करना है तुम्हें खुद अपनी दम पर करना पड़ेगा। आगे तुम्हें ऐसे चेहरे देखने को मिलेंगे जो कभी हमने एक्सपेक्ट भी नहीं किये होंगे इसलिए भरोसा रखो वो भी खुद पर। स्मारक से निकल तो आये मगर याद बहुत आती है इसकी। यहाँ भोपाल में कोई होस्टल नही है हमारे लिए जैसा स्मारक में था बस स्ट्रगल है जो हम भी कर रहे हैं। स्मारक में थे तो न खाने की टेंसन न रहने की दिक्कत न लाइट की परेशानी ब्लॉ ब्लॉ ब्लॉ

मगर अब ये क्षेत्र अलग है। कॉम्पीटिसन भी बहुत है मगर अपना टेलेंट ही हमें आगे देगा यही आज का सच है। आप लोग अभी अच्छा कर रहे हैं। मैं यूट्यूब पर आपके कार्यक्रम देखता रहता हूँ। well done👌👌👍👍

अभी हमारे कॉलेज के सत्रारम्भ में प्रसिद्ध फ़िल्म एक्टर आशुतोष राणा ने जाते जाते एक बात कही थी।

"तुम बिना अवरोध के बढ़ते चलो शुभकामनाएं।
मैं अगर संभव हुआ तो रास्ते में आ मिलूंगा

All the best - नेक्स्ट ईयर के लिए

इतनी सुंदर विदाई देने के लिए आप सभी जूनियर्स का तहे दिल से शुक्रिया💐💐💐



देखते हैं इन पाँच सालों में कितने विकेट पहले गिरते हैं। कौन क्या क्या बन जाता है। मैं वादा करता हूँ आज से पांच साल बाद फिर अपनी क्लास के लिए एक ब्लॉग लिखूंगा। कौन-कौन क्या-क्या बन गए हैं सबका स्ट्रगल लिखने के लिए इंतज़ार रहेगा अगली पांच साल का।

सच कहने का सलीका दिया है तुमने स्मारक 
मैं कब का मर गया था मुझे जीना सिखाया है तुमने।
दूसरों को खोजने के चक्कर में कबका खो गया था कहीं,
मुझे मुझसे अच्छे से मिलाया है तुमने स्मारक।


अंत में यही कहना चाहता हूँ


  #फकत इतना रहा #सफर हमारा।
 #नमूने आये थे #नवाब बन गए हैं।





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2 टिप्पणियाँ

  1. लेखक तो तू बन गया।
    *नाम* कब होगा इसकी चिंता तो अब किस्मत करे।

    गले लगके ढेर सारा दोस्ताना।

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  2. बहुत ही शानदार भाई। जब भी तुम्हे पढ़ने बैठता हूं तो उठने का मन ही नहीं होता है।
    ऐसे ही लिखते रहो। अगले तजुर्बात का इंतजार रहेगा।
    और अपना शांत और शैतानी सफर तो जारी रहेगा सोमू।।।

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