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उड़ान एक परिंदे की review#2


ओरिजनल पोस्ट
उड़ान.. सोमिल की किताब.. पढ़ते हुए मजा आया.. न सिर्फ इसलिए कि कहानी अच्छी थी बल्कि इसलिए भी की "हमारे लंगोटिया लेखक बन गए हैं" ज्यादा तारीफ करके मैं सोमू को भाव देना नहीं चाहता ..भाव देने की आदत भी नहीं है.. लेकिन इतना जरूर कहूँगा की अगर ये किताब मेरे सामने न लिखी गई होती और अचानक सोमिल के नाम से मेरे सामने आती तो मैं शायद ये कहता कि..नईईई ..हो ही नहीं सकता... सोमिल.. ?? ये किताब..??.. कहानी खुद बनाई??..नहीं नहीं हो ही नहीं सकता...यहाँ वहाँ से स्टोरी उठा कर चेप दी होगी ..वो नही लिख सकता..  ऐसा इसलिये क्योंकि एक तो कहानी जोरदार.. फिर बीच बीच में जो ज्ञान बांटा है वो जोरदार.. और ज्ञान को जिन डायलॉग्स से बांटा है उनके तो कहने ही क्या..लेकिन इस क़िताब की कहानी.. और इस किताब के लिखे जाने की कहानी को मैंने खुद देखा है.. और देखा है इसके पीछे की मेहनत को....और उस मेहनत को देखकर ही समझ आया कि वाकई एक पन्ना लिखने के पहले 100 पन्ने पढ़ने पड़ते हैं....और लेखक महोदय को मैंने पन्ने पढ़ते हुए भी देखा है और लिखते हुए भी इसलिये शक की कोई गुंजाइश नहीं. कहानी की बात करूँ तो..छोटू और रोहित की दोस्ती..डॉक्टर साहिब से प्यार और गलतफहमियों से होने वाली तकरार.. इन सभी रिश्तों को बखूबी पन्नों पर उतारा गया है.. और इस दौरान अपने जीवन के अनुभवों का भी भरपूर प्रयोग किया है.. एक मध्यमवर्गीय युवा की दीनता और शिखर पर पहुंचकर उसके गर्व का स्वाभाविक चित्रण किया गया है.. कहानी के साथ साथ भाई ने फिलॉसॉफी भी अच्छी और काम की झाड़ी है जैसे.. .."दौड़ना नहीं चाहता बस चलते रहना चाहता हूँ.. जिससे पैरों में जंग भी न लगे और गिरूं भी नहीं." एक जगह लिखा है की ""जल्दी जल्दी चलने में पल निकल जाते हैं और हम उसे जी भर कर जी नहीं पाते.. फिर बाद में अफसोस होता है कि काश उस पल को जी लिया होता..और आराम से चलने वाले को बीते लम्हों की याद तो आती है पर अफ़सोस नहीं होता.. ये पढ़कर लगा कि सोमू सच में बड़ा हो गया है.. इस किताब के साथ साथ आगे आने वाली सभी किताबों के लिये एडवांस में बधाई देते हुए अंत में लेखक की ही पंक्तियाँ लेखक को ही सुना रहा हूँ.. "राह तुम चुनना सही, भीड़ में खोना नहीं.. ज़िन्दगी तो झंड है हारकर रोना नहीं..

 नयन जैन


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