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ख़त मेरे नाम का #1

 डिअर सोमिल जी,



ये खत लिख तो रहा हूँ , पर पता नही ये जो शब्द लिख रहा हूँ वो सही है भी या नही, फिर भी लिख रहा हूँ। जब मैंने आपको पहली बार स्मारक में देखा था तब आप पढ़ रहे थे। तब मुझे लगा था ये कौन है जो कार्यक्रम छूटते ही पढ़ रहा है । तब आप कोई कविता लिख रहे थे , और अमन जी आपसे कह रहे थे कि इसबार कविता किसी अच्छे से छंद में लिखना। फिर एक बार आप बस के बाहर मिले तब आपने कहा था कि में एक किताब लिख रहा हूँ , तब मुझे लगा था । ऐसे कैसे कोई किताब लिख लेगा? । तब मेरा मानना था कि लेखक कुछ अलग ही होते है। हम तुम लेखक नही बन सकते है। पर आपने मेरी यह मान्यता तोड़ दी और न जाने मेरे जैसे कितनो की। अच्छा हुआ ये, जो मेरी गलत फेमी दूर हो गई। आपकी किताब आते देखकर और पढ़कर लगा हाँ में भी लिख सकता हूँ। किताबों को पढ़ना आपसे ही सीखा है , आपसे किताबें लेकर पढ़ना शुरू किया था और अभी भी जारी है.......। जब किसी का साथ न हो तो हमे खुद ही अपने पैरों पर चलना पड़ता है और आपने चलकर नही दौड़कर दिखाया है । जो सोचा वो करना भी है इसके आप एक अच्छे उदाहरण हो , बहुत सी चीजें आपसे सीखी है बहुत सी सीखना बाकी है । वह भी सीखूंगा । आप अपने हर काम में डटे रहे और हर मुकाम को पाए। बस यही चाहूंगा।  आप जो काम करें तो आपको ये गर्व न हो कि मैंने ये काम किया, बल्कि काम को गर्व हो कि मुझे सोमिल ने किया। बस यही कामना.........

आपका - संयम😍





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