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सादगी की एक ऐसी तस्वीर जिससे सीखना चाहिए



जब हमारा देश ऐसी जानलेवा महामारी से गुजर रहा है तब ऐसी कुछ तस्वीरें एक गहरा संदेश दे जाती हैं कि हमें भी इन तस्वीरों से, इन लोगों से सीखना चाहिए। कोरोना महामारी के फैले रहने के बीच में भी ये तस्वीर  प्रेरणा का उदाहरण है।


● जहाँ कोरोना को कम करने के लिए लॉक डाउन के चलते लोगों को रोजमर्रा के जरूरत के सामान पूर्णतः उपलब्ध नहीं हो पा रहे वहाँ ये व्यक्ति कुछ अलग ही करता है।
● "जो मिल गया उसी में खुशी है" इस भयाभय स्थिति में ये संदेश एक सबेरा देती है।

● ज़मीन पर बैठा विदेशी व्यक्ति कौन है? जिसने ये कहा कि जब सबको दो रोटी मिल रही हैं तो मैं भी दो रोटी ही लूंगा ज्यादा नहीं
● हमारे देश की "वसुधैव कुटुम्बकम्" विशेषता हमेशा से रही है जिसे इस विदेशी नागरिक ने दिल से लगाया है।
● दिल्ली में असहाय लोग जो एक वक्त की रोटी खाने के लिए लोग बैठे हैं उनके बीच ये भूरे रंग का व्यक्ति कौन है?

           तस्वीर दिल्ली की है।ज़मीन पर बैठा नीली शर्ट पहने भूरे रंग का यह आदमी है कौन? रोड पर बैठ कर खाना खा रहे व्यक्ति से जब ये  पूछा गया कि "सर और रोटी चाहिए"
तो उन्होंने हिंदी में ही बोलते हुए  मना कर दिया कि "नहीं, सबको दो ही रोटी मिल रही है तो मैं भी दो ही रोटी खाऊंगा" ।
ये शख्स कोई और नहीं बल्कि Jean_Drèze हैं
जो यूपीए (UPA) शासनकाल के दौरान नेशनल एडवाइजरी कमिटी के मेंबर थे।मनरेगा की ड्रॉफ्टिंग भी इन्होंने की थी। आरटीआई लागू करवाने में इनका अहम योगदान था। 

थोड़ा पीछे जाते हैं और इनके बारे में विशेष जानते हैं ये बेल्जियम में पैदा हुए, लंदन स्कूल ऑफ इकॉनिमिक्स में पढ़ाया और अब भारत में हैं। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी जीबी पंतबसोशल साइंस में विजिटिंग प्रोफेसर रहे। इलाहाबाद में तो झूंसी से विश्वविद्यालय तक साईकिल से आते जाते थे। हिंदी में बात करते थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई की। जब इनके विषय में पता चला तभी से इनके प्रति जो सम्मान हृदय में पैदा हुआ, उसकी व्याख्यान असंभव है।
नोबल अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन के साथ डेवलपमेंट इकॉनिमी पर किताब लिख चुके हैं। दुनिया भर में सैकड़ों इनके पेपर पब्लिश हो चुके हैं।
फिलहाल वे राँची यूनीवर्सिटी में पढ़ा रहे हैं। दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनिमिक्स में भी विजिटिंग प्रोफेसर हैं।

इस भयंकर बीमारी में ये कार्य और तस्वीर सादगी का परिचय है। हमें भी प्रेरित करती है कि जब विदेशी नागरिक हमारे देश के लिए इतना कर रहा है तो हम भी अपने देश के लिए, उसे आबाद रखने के लिए सरकार के आदेशों का पालन नहीं कर सकते क्या?

सोमू

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